August 12, 2009

सामानांतर रेखाएं एक जोड़ी


(मैं इस कविता को पहले थोड़ा बता देता हूँ, सामानांतर रेखा--एक जोड़ी दो रेखा,,शायद एक के विना दूसरा बिल्कुल बेकार,,पर एक दुसरे का पूरक होते हुए भी वो कभी मिल नही पाते,,मिलते है तो बस अनंत पर , ये कविता भी ठीक वही स्थति व्यान करती है , वाकी आप समझ सकतें है.......... मैं मौन हूँ )

हम दोनों जानते है एक दुसरे को शायद बरसो से
फिर भी जाने क्यूँ लगता है मुझे
हम दोनों सामानांतर रेखाएं है एक जोड़ी
जो कभी मिल नही सकतें
दुनिया की नजरो में हम रेखाएं हैं हम एक जोड़ी
एक के बिना दूसरा बिल्कुल अधुरा
पर शायद यह एक फ़साना हीं है
एक ऐसा अनजान फ़साना
जो वास्तवकिता से बिल्कुल परे है
बार बार सोचता हूँ आख़िर क्यूँ है ये दूरी
क्यूँ नही तोड़ देते ये फासले ये मजबूरी
और सहसा तुम कह उठती हो
ये मज़बूरी नही ,कोई दूरी नही
ये तो एक सच्चाई है हमारे पवित्र प्यार की
जो है दुनिया से बिल्कुल अंजना , बिल्कुल अनचाहा
मैं भी सोचता हूँ --
ठीक ही तो कहती हो तुम
शायद बिल्कुल ठीक कहती हो
ये तड़पन ये धड़कन क्या कम हैं
जो प्यासे हैं तेरी एक झलक को
आख़िर इससे हीं तो तेरी यादें जुड़ी है
रातों की वो बातें जुड़ी है
जुड़ी है एक प्यारा सा "प्रकाश"
जिसकी ज्योति कभी मद्धम नही होती
कभी नही.....................!!!!

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