August 12, 2009

एक अनजाना शख्स



चल रहा था तन्हा


अंजान सड़कों पर


अविचल , अनीस्चित.......


शायद सवाले थी कुछ ,


चाहिए था जवाब जिनका ,


ख़ुद से ...........................!!


एक अंजान शख्स .....,,,,


आकर पास कुछ पूछा......,,,


अपने धुन में था मैं ,समझा नही कुछ मैं


दुबारा पूछा,...समझा.....


शायद जानना चाहता था मेट्रो का पता ,


मैंने बोला "मैं भी वहीँ जा रहा हूँ,


वो बोला , बातें किया मुझसे


मैंने उसका चेहरा देखा .....!


फटें पड़े थे कपड़े सारे ,


सर की टोपी भी थी फटी ,


उसके जूते हबी थे वही फटें


पता लगा बातों -बातों में ,


वो जोड़ रहा पाई पाई-पाई


पिछले दो सालों से ....


पुरी कर सके ताकि ख्वाइश


ख़ुद की नही पर उसकी


चाहता था वह जिसे सबसे ज्यादा


शायद ख़ुद से भी ज्यादा


वो एक चालीस साल की लड़की थी ,


प्यार करता था जिसे वह ,


साड़ी तहजीबों से ज्यादा


चाहता था जिसे वह साड़ी मजहबों से ज्यादा ,


मिल चुके थे जवाब मुझे


अपने सवालों के॥


और मैं भी मजबूत अपने रास्ते पे चल पड़ा ..........!!!!

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