November 1, 2009

वो चाँद जैसी लड़की .............!!

ये वादियाँ बहुत कुछ कहतीं है ...शायद  किसी की याद ...शायद किसी रिश्ते की कहानी ....शायद किसी के दूर होने का एहसास .....

गूंजती  है धड़कन की सदा तेरे लिए 
मेरी आँखों में अबतक है नशा तेरे लिए
क्यूँ मेरे प्यार की आवाज नहीं तुम सुन सकते 
तेरे आने की जब खबर महके 

तेरी खुशबू से ते सारा घर महके 
तुं घडी दो घडी जहाँ बैठे 
वो जमीं महके वो सजल महके 

वो परिंदा जिसे परवाज़ से फुर्सत ही नहीं था 
अब अकेला है तो तो दीवार पे आ बैठा   है
मैं आइने में अपनी तस्वीर पहचानता भी तो कैसे
हमेसा उसकी हीं तस्वीरें बनता रहा था मैं 

अब कहाँ हूँ ,कहाँ नहीं हूँ मैं
जिस जगह था , वहां नहीं हूँ मैं
कौन आवाज दे रहा है मुझे 
कोई कह दे वहां नहीं हूँ मैं

मय के टुटा हुआ सितारा हूँ 
क्या बिगाड़ेगी अंजुमन मेरा 
दस्त मेरा न ये चमन मेरा 
मैं हवा हूँ, कहाँ वतन मेरा

रखी थी शहर की बुनियाद कैसे  लोगों ने 
ये कौन लोग हैं जिनमे भटक रही है हवा 
शहर  कुछ और था और अब तो ये हाल बाग़ का है 
की पांव रखते हुए भी ठिठक जाती है हवा

ये दिल तुझे इतनी सिद्दत से चाहता  क्यूँ है
हर सांस के साथ तेरा ही नाम आता क्यूँ है
तू कितना भी दूर मुझसे ताल्लुक  कर कर
जिक्र phir भी तेरा मेरी जुवां पे आता क्यूँ है 

हर पल में प्यार है
हर पल में ख़ुशी है
खो जाएँ तो यादें हैं 
जी ले तो जिंदगी है 
                  ( तो जी क्यूँ न ले क्या पता कल हम हो न हों... क्या पता कल ये वादियाँ हो न हों )

दूर कहीं जब दिन ढल जाए .....!

यादें क्यूँ आती हैं ? उन पगडंडियों ....पहाड़ों .....रास्तों  को देख .. ...मैं समझ नहीं पता हूँ  और सर झुका कर आँखें बचा कर चल पड़ता हूँ .... . कहीं जाना न था - पर यूँ हीं चल पड़ा जाने कहाँ ....



जिंदगी जब भी तेरी बाहों में लाती हैं हमे 
ये जमीं चाँद  से बेहतर  नज़र आती है हमे 
हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूँ है 
अब तो यही बात हर वक़्त सताती हैं हमे






लोग गिर गिर कर संभलते क्यूँ हैं
जब गिरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं 
न मैं जुगनू न आफताब कोई
फिर ये उजाले वाले मुझसे जलते क्यूँ हैं
कई दिनों से नहीं नींद से ताल्लुक  मेरा
खाव्ब ये रातों को मेरे चत पे टहलते क्यूँ हैं  







कुछ पल साथ  चला तो जाना  
रास्ता है जाना पहचाना 
साँसों को सुर दे जाते हैं 
तेरा यूँ सपनों में आना   





क्या अब भी तेरी फुरकत में 
एक सावन कोई लिखता है
क्या अब भी तुम्हारे होठों
पे एक चुम्बन कोई जड़ता है 
क्या अब भी तेरे कन्धों से 
वो लाल दुपट्टा गिरता है
क्या अब भी दिल हीं दिल में 
तेरे कोई उतरता है 




पुकारते हैं दूर से वो फासले बहार के 
बिखर गयें थे रंग से जो किसी के इन्तेजार से 
लहर-लहर में खो  चुकी 
बहा चुकी कहानियां 
सुना रहा है ये शमां सुनी सुनी सी दास्ताँ 





परखना मत परखने से कोई अपना नहीं रहता 
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता 
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला  रखो
जहाँ दरिया समंदर से मिला , दरिया नहीं रहता