August 10, 2009

मैं ऐसा ही था कुछ दिन पहले

मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि
जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं.मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे
पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है!मैं जैसा खुद को
देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं.......कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला
भी...कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी....मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे
हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से
सन्तुष्ट नही हूं...मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा
विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं...मुझे खुद
से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी...बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है
कि मैं बहुत अकेला हूं...मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी...लोग कहते हैं लड़कों
को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ
ज्यादा महसूस करता हूं ............

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