November 19, 2011

जहाँ और भी हैं

मुंबई की एक चौड़ी और ट्रैफ़िक से भरी सड़क के एक चौराहे पर एक छोटे क़द का इंसान दोनों हाथ ऊपर उठाए और हाथ में एक बोर्ड लिए एक पैर पर खड़ा है.
दोपहर का समय है. सूरज सर के ऊपर है. नवंबर का महीना ज़रूर है लेकिन मुंबई में सर्दी कब होती है.इस इंसान का नाम है कृष्ण अवतार उर्फ़ कृष्ण दास. कृष्ण दास पिछले तीन वर्षों से अमिताभ बच्चन के घर के क़रीब जुहू सर्किल नामक इस चौराहे पर दिन भर खड़े रहते हैं और राहगीरों, वाहन चालकों, ट्रैफ़िक पुलिस वालों और आम आदिमयों को मुस्कुरा कर सबसे प्रेम करने और अपने धर्म पर चलने का पैग़ाम देते आ रहे हैं.लेकिन यह इंसान गर्मी की परवाह न करके मुस्कुराते हुए कई घंटों से खड़ा है और अगले कई घंटों तक खड़ा रहेगा. बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा है, "अपने धर्म पर चलो. सबसे प्रेम करो."
प्यार का यह संदेश कोई नई बात नहीं. संत और महात्मा यह पैग़ाम सदियों से देते चले आ रहे है. लेकिन 50 वर्षीय ये साधू कहते हैं कि प्रेम का इस्तेमाल सबसे पहले घर से शुरू किया जाए, तो आदमी सुखी रहेगा और घर से बाहर भी ख़ुशी का माहौल बनाना पसंद करेगा.
सुबह जॉगिंग करने वालों की एक बड़ी भीड़ होती है. इसका मतलब ये हुआ कि इन संदेशों के बारे में लोगों में उत्सुकता ज़रूर जागेगी.


कृष्ण दास कहते हैं, "लोग इन पैग़ामों को पढ़ते हैं और मेरे पास आकर सवाल करते हैं. आम तौर से लोगों को मेरी यह कोशिश पसंद है और हमें काफ़ी समर्थन मिलता है. लेकिन ज़ाहिर है कुछ लोगों को यह कोशिश बेमानी लगती है और वो अपने विचारों को खुल कर प्रकट भी करते हैं."
जॉगिंग करती एक जोड़ी ने कहा कि वो बाबा की कोशिश को सराहते हैं, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं. लोग उनके पैग़ाम को पढ़ते हैं और जुहू बीच से बाहर जाते ही भूल जाते हैं. लेकिन अधिकतर लोग कृष्ण दास की कोशिशों की प्रशंसा करते सुनाई दिए.
गन्ने के रस की एक दुकान वाले ने कहा कि वो बाबा की लगन से बहुत प्रभावित हैं.
वो कहते हैं, "बाबा को हर रोज़ मैं यहाँ देखता हूँ. बारिश हो या बरसात. गर्मी हो या धूप, वो यहाँ ज़रूर आते हैं. हर रोज़ सुबह को यह तख्तियां रेत में गाड़ते हैं और व्यायाम करते हैं. फिर लोग उनके पास आते हैं और इन तख्तियों पर लिखे संदेशों के बारे में पूछते हैं."
फ़िल्मी जगत के अलावा भी लोग उनका प्रोत्साहन बढ़ाते हैं. वो कहते हैं, "मुझे बुर्के वाली मुस्लिम महिलाएं भी आकर बधाई देती हैं और कहती हैं कि मेरा पैग़ाम सही है."
कृष्ण दास कहते हैं कि वो किसी से पैसे या और किसी तरह की मदद नहीं लेते. तो फिर वो अपना पेट कैसे भरते हैं?
जवाब में कृष्ण दास कहते हैं, "मेरे गुरु संत मुरारी बापू मेरी देखभाल करते हैं. ये वही संत हैं, जिन्होंने विश्व धर्म सम्मलेन करवाया था और तब से मैं उनका भक्त हो गया हूं."
कृष्ण दास कहते हैं कि वो सबसे अच्छा मार्गदर्शन देने वालों में से एक हैं. वो शिष्य नहीं बनाते, लेकिन मैंने मुरारी बाबू को अपना गुरु बना लिया है.

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