यादें क्यूँ आती हैं ? उन पगडंडियों ....पहाड़ों .....रास्तों को देख .. ...मैं समझ नहीं पता हूँ और सर झुका कर आँखें बचा कर चल पड़ता हूँ .... . कहीं जाना न था - पर यूँ हीं चल पड़ा जाने कहाँ ....
जिंदगी जब भी तेरी बाहों में लाती हैं हमे
ये जमीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमे
हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो यही बात हर वक़्त सताती हैं हमे
लोग गिर गिर कर संभलते क्यूँ हैं
जब गिरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं
न मैं जुगनू न आफताब कोई
फिर ये उजाले वाले मुझसे जलते क्यूँ हैं
कई दिनों से नहीं नींद से ताल्लुक मेरा
खाव्ब ये रातों को मेरे चत पे टहलते क्यूँ हैं
कुछ पल साथ चला तो जाना
रास्ता है जाना पहचाना
साँसों को सुर दे जाते हैं
तेरा यूँ सपनों में आना
क्या अब भी तेरी फुरकत में
एक सावन कोई लिखता है
क्या अब भी तुम्हारे होठों
पे एक चुम्बन कोई जड़ता है
क्या अब भी तेरे कन्धों से
वो लाल दुपट्टा गिरता है
क्या अब भी दिल हीं दिल में
तेरे कोई उतरता है
पुकारते हैं दूर से वो फासले बहार के
बिखर गयें थे रंग से जो किसी के इन्तेजार से
लहर-लहर में खो चुकी
बहा चुकी कहानियां
सुना रहा है ये शमां सुनी सुनी सी दास्ताँ
परखना मत परखने से कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखो
जहाँ दरिया समंदर से मिला , दरिया नहीं रहता
जिंदगी जब भी तेरी बाहों में लाती हैं हमे
ये जमीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमे
हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो यही बात हर वक़्त सताती हैं हमे
लोग गिर गिर कर संभलते क्यूँ हैं
जब गिरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं
न मैं जुगनू न आफताब कोई
फिर ये उजाले वाले मुझसे जलते क्यूँ हैं
कई दिनों से नहीं नींद से ताल्लुक मेरा
खाव्ब ये रातों को मेरे चत पे टहलते क्यूँ हैं
कुछ पल साथ चला तो जाना
रास्ता है जाना पहचाना
साँसों को सुर दे जाते हैं
तेरा यूँ सपनों में आना
क्या अब भी तेरी फुरकत में
एक सावन कोई लिखता है
क्या अब भी तुम्हारे होठों
पे एक चुम्बन कोई जड़ता है
क्या अब भी तेरे कन्धों से
वो लाल दुपट्टा गिरता है
क्या अब भी दिल हीं दिल में
तेरे कोई उतरता है
पुकारते हैं दूर से वो फासले बहार के
बिखर गयें थे रंग से जो किसी के इन्तेजार से
लहर-लहर में खो चुकी
बहा चुकी कहानियां
सुना रहा है ये शमां सुनी सुनी सी दास्ताँ
परखना मत परखने से कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखो
जहाँ दरिया समंदर से मिला , दरिया नहीं रहता
1 comment:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 नवम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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